Bharat Ke Pramukh Parvat Evam Pathar In Hindi
Download PET STUDY EXAM APP 2022 CLICK HERE
Table of Contents
अरावली पर्वत श्रृंखला :-
इसकी सीमा गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा होकर दिल्ली तक जाती है ।
भारत की नहीं पूरे विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है ।
प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर पश्चिमी सिरे पर अरावली पर्वत का विस्तार है।
अरावली की अधिकतम लम्बाई राजस्थान राज्य में है।
अरावली दुनिया का सबसे प्राचीन वलित पर्वत है। ये धीरे धीरे अपरदित होता गया वर्तमान में यह अवशिष्ट पर्वत के रूप में शेष है ।
अरावली पर्वत श्रृंखला की लम्बाई 692 कि0मी0 है ।
चौड़ाई गुजरात की तरफ अधिक एवं दिल्ली की तरफ घटती है ।
इसका उच्चतम शिखर गुरूशिखर जिसकी ऊँचाई 1722 मी0 है, राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू के पास स्थित है ।
उदयपुर में अरावली पहाड़ियों को जग्गा पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है ।
अलवर के पास इन्हे हर्षनाथ की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है ।
दिल्ली में दिल्ली पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है ।
दिल्ली में राष्ट्रपति भवन रायशेला पहाड़ियों पर है । यह पहाड़ियों भी अरावली पहाड़ियों का ही अंग है ।
कई प्रकार के खनिज पाये जाते है । जैसे शीशा, तांबा एवं जस्ता ।
इस पर्वत श्रृंखला की अन्य महत्वपूर्ण चोटियां है ।
सेर – 1597 मी0, माउंट आबू के पास सिरोही जिले में ।
रघुनाथ गढ़ – 1055 मी0, सीकर राजस्थान में ।
अचलगढ़ – 1380 मी0, सिरोही जिले में ।
दिलवाड़ा – 1442 मी0, सिरोही जिले में, यहीं पर एक जैन मंदिर भी है ।
विंध्याचल पहाड़ियां :-
विंध्याचल पहाड़ियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है –
मालवा के पठार के दक्षिण में ।
सोन नदी के उत्तर में ।
गुजरात तथा राजस्थान की सीमा के पूर्व में ।
गुजरात से शुरु होकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तथा बिहार तक जाती है । इसी पर्वत श्रृंखला को तीन भागों में बाँटा जा सकता है ।
भारनेर की पहाड़ियां- मध्य प्रदेश में ।
केमूर- उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश में ।
पारसनाथ- झारखण्ड में ।
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की कुल लम्बाई 1050 कि0मी0(कैमूर पहाड़ियों को मिलाकर) है ।
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की औसत ऊँचाई 300-600 मी0 है ।
विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला का सबसे उच्चतम बिन्दु सदभावना शिखर है । मध्य प्रदेश में भारनेर पहाड़ियों का हिस्सा है ।
सतपुड़ा पहाड़ियां :-
सतपुड़ा का विस्तार 3 राज्यों में है –
गुजरात , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश लेकिन अधिकतर मध्यप्रदेश में है
सतपुड़ा पहाड़ियों के उत्तर में नर्मदा नदी बहती है, तथा दक्षिण में ताप्ती नदी बहती है । दोनों ही भ्रंश घाटियों में बहती है ।
दोनों भ्रंश घाटियों के बीच स्थित पर्वत को ब्लॉक पर्वत कहते है।
सतपुड़ा पर्वत पश्चिम से पूर्व की ओर 3 पहाड़ियों में विस्तृत है –
राज पीपला पहाड़ियां ।
महादेव की पहाड़ियां ।
मैकाल की पहाड़ियां ।
सतपुड़ा की पहाड़ियों का सबसे उच्चतम बिंदु धूपगढ़ महादेव की पहाड़ियां का हिस्सा है ।
धूपगढ़ की चोटी पंचमड़ी नगर के पास स्थित है ।
तापती नदी का स्रोत भी महादेव की पहाड़ियां ही हैं ।
मैकाल की पहाड़ियां :-
अमरकंटक जहां से नर्मदा एवं सोन नाम की दो नदियां निकलती है, इसी मैकाल की पहाड़ियों की हिस्सा है ।
अमरकंटक पहाड़ी से दो नदियां निकलती है । नर्मदा , सोन नर्मदा पश्चिम में अपनी भ्रंश घाटी से बहते हुए खम्भात की खाड़ी में गिरती है। सोन नदी अमरकंटक से निकलकर उत्तर में प्रवाहित होती है और पटना के पास गंगा में मिल जाती है।
अमरकंटक ही मैकाल की पहाड़ियों का उच्चतम बिंदु भी है इसकी ऊंचाई 1036 मी0 है ।
मेघालय पठार या शिलांग पठार :-
शिलांग पठार एक स्वतन्त्र पठार न होकर यह प्रायद्वीपीय भारत के पठार का ही हिस्सा है| है, यह राजमहल पहाड़ी का ही पूर्वी विस्तार है|
शिलांग पठार के अंतर्गत पांच पहाड़ियाँ शामिल हैं –
गारो, खासी, जयंतिया, मिकिर और रेंगमा|
मेघालय राज्य में स्थित – गारो, खासी और जयंतिया
असम राज्य में स्थित -मिकिर और रेंगमा पहाड़ी
शिलांग पठार की सबसे ऊँची चोटी नोकरेक गारो पहाड़ी के अंतर्गत स्थित है|
दक्कन का पठार :-
दक्कन पठार की अवस्थिति सतपुड़ा पर्वत श्रेणी, पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट के मध्य में स्थित है|
दक्कन पठार मुख्य रूप से दक्कन ट्रैप की चट्टानों से बना हुआ है|
दक्कन पठार के अंतर्गत निम्नलिखित पहाड़ियों को शामिल किया जा सकता है –
हरिश्चन्द्र पहाड़ी
बालघाट पहाड़ी
अजन्ता पहाड़ी
गविलगढ़ पहाड़ी
ये सभी पहाड़ी महाराष्ट्र राज्य में स्थित है।
दक्कन पठार के अंतर्गत ही दंडकारण्य का पठार है|
दंडकारण्य के पठार का विस्तार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्य में स्थित है|
इसके के अंतर्गत ही बस्तर का पठार स्थित है| यह दंडकारण्य पठार के दक्षिण में स्थित है|
भारत में टिन का एकमात्र भण्डारण बस्तर पठार में ही स्थित है|
महानदी बेसिन :-
महानदी बेसिन छत्तीसगढ़ राज्य में दंडकारण्य पठार के उत्तर में तथा छोटा नागपुर पठार के मध्य में स्थित है|
महानदी बेसिन का क्षेत्र धान के उत्पादन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है|
उत्तर प्रदेश में धान का कटोरा चंदौली जिले को कहा जाता है|
पूर्वोत्तर की पहाडियां :-
ये पहाड़ियां हिमालय पर्वत का ही हिस्सा है ।
ये पहाड़ियां मुख्यतः पांच राज्यों में बटी हुयीं हैं – मेघालय, असम, नागालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम ।
मेघालय में है – गारो, खासी और जयन्ती ।
जयन्ती पहाड़ियों का कुछ भाग असम में भी आता है ।
पटकायी बूम- असम, नागालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम में फैली हुयी है ।
पटकायी बूम पर्वत श्रेणियों को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है ।
नागालैण्ड में नागा पहाड़ियां ।
मिजोरम में लुशाई पहाड़ियां ।
हिमालय पहाड़ियों के म्यांमार में पड़ने वाले हिस्से को अराकान योमा कहा जाता है ।
पश्चिमी घाट या सह्याद्रि :-
इसकी औसत ऊंचाई 1200 मीटर है और यह पर्वतमाला 1600 किमी लम्बी है। इस श्रेणी में दो प्रमुख दर्रे हैं –
पश्चिमी घाट पर्वत तापी नदी के मुहाने से शुरू होकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत है
पश्चिमी घाट पर्वत का विस्तार उत्तर से दक्षिण की ओर है| उत्तर से दक्षिण तक इसकी कुल लम्बाई लगभग 1600 किमी. है|
पश्चिमी घाट पर्वत भारत में हिमालय के बाद दूसरा सबसे लम्बा पर्वत है|
उत्तरी सह्याद्रि की सबसे ऊँची चोटी काल्सुबाई है|
काल्सुबाई चोटी के दक्षिण में पश्चिमी घाट पर महाबलेश्वर चोटी स्थित है|
महाबलेश्वर चोटी और काल्सुबाई चोटी महाराष्ट्र राज्य में स्थित है|
गुजरात राज्य के अंतर्गत सौराष्ट्र क्षेत्र में तीन पहाड़ियां स्थित हैं –1. गिर पहाड़ी 2. बारदा पहाड़ी 3. मांडव पहाड़ी
गुजरात के गिर क्षेत्र में एशियाई शेर पाये जाते हैं|
दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट पर्वत और पूर्वी घाट पर्वत एक-दूसरे से मिलकर एक पर्वतीय गाँठ का निर्माण करते हैं, इस पर्वतीय गाँठ को नीलगिरी पर्वत कहते हैं|
नीलगिरी पर्वत की सबसे ऊँची चोटी डोडाबेटा है|
नीलगिरी पर्वत का विस्तार तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक राज्यों में है|
डोडाबेटा दक्षिण भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है|
थालघाट जो नासिक को मुम्बई से जोड़ता है और भोरघाट। तीसरा दर्रा पालघाट इस श्रेणी के दक्षिणी हिस्से को मुख्य श्रेणी से अलग करता है।
प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ऊंटी तमिलनाडु राज्य में नीलगिरी पहाड़ियों पर ही स्थित है|
केरल का प्रसिद्ध सदाबहार वन साइलेंट वैली अथवा शांत घाटी नीलगिरी पहाड़ियों पर ही स्थित है|
साइलेंट वैली अपनी जैव विविधता और घने जंगलों के लिए जाना जाता है|
पश्चिमी घाट पर्वत पर जगह-जगह दर्रे पाये जाते हैं, इन दर्रों से होकर पश्चिमी घाट पर्वत को पश्चिम से पूरब दिशा कि ओर पार करने में सहायता मिलती है|
थालघाट दर्रा :-
पश्चिमी घाट पर महाराष्ट्र राज्य में स्थित है| थालघाट दर्रे से होकर ही मुंबई-नागपुर सड़क मार्ग गुजरता है|
भोरघाट दर्रा :-
पश्चिमी घाट पर महाराष्ट्र राज्य में ही स्थित है| भोरघाट दर्रे से होकर ही मुंबई से पुणे जाने वाली सड़क मार्ग गुजरता है|
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या – 4 मुंबई से पुणे होते हुए चेन्नई पहुँचती है, यह राजमार्ग भी भोरघाट दर्रे से होकर गुजरता है|
पालघाट दर्रा :-
नीलगिरी एवं अन्नामलाई पहाड़ियों के बीचो-बीच केरल राज्य में स्थित है|
पूर्वी घाट :-
इसकी औसत ऊंचाई 615 मीटर है ओर यह श्रेणी 1300 किलोमीटर लम्बी है। पूर्वी घाट के अंतर्गत दक्षिण से उत्तर की ओर पहाड़ियों को पालकोंडा, अन्नामलाई, जावादी शेवाराय ,नल्लामलाई ,पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।
पूर्वी घाट पर्वत पश्चिमी घाट पर्वत की तरह क्रमबद्ध एवं निरन्तर न होकर अपरदन के कारण जगह-जगह पर टूटा है|
प्रायद्वीपीय भारत के पठार का ढाल पूर्व की तरफ है, जिसके कारण प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर पूर्वी तट पर प्रवाहित होती हैं जैसे – महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ|
पूर्व की ओर प्रवाहित होने के कारण महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों ने पूर्वी घाट पर्वत को जगह-जगह अपरदित कर दिया है|
गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा के बीच में पूर्वी घाट पर्वत बिल्कुल समाप्त हो गया है|
पूर्वी घाट पर्वत को अलग-अलग राज्यों में स्थानीय नाम से जाना जाता है|
जैसे –
नल्लामलाई – आंध्र प्रदेश में
पालकोंडा और वेलिकोंडा – तेलंगाना में
जावादी, शेवाराय, पंचामलाई और सिरुमलाई – तमिलनाडु
तमिलनाडु की पहाड़ियाँ चार्कोनाइट चट्टानों से निर्मित हैं|
नीलगिरी पर्वत समेत तमिलनाडु की पहाड़ियों पर चंदन और सागौन के वृक्ष अधिक मात्रा में पाये जाते हैं|
Read More :-
भारत का भूगोल : सामान्य जानकारी एक दृष्टि में
भारत में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है महत्वपूर्ण प्रश्न
नदियों के किनारे बसे भारत के प्रमुख नगर
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान
भारत की प्रमुख नदियाँ और उनके उद्गम स्थल
प्रमुख नदियां एवं उनकी सहायक नदियां