भारत शासन अधिनियम 1935 | Government of India Act 1935

Bharat Shasan Adhiniyam 1935 In Hindi

भारत शासन अधिनियम 1935

निर्धारित समय से दो वर्ष पूर्व नवम्बर  1927  में एक संविधान में भारत की  स्थिति का पता लगाने हेतु ब्रिटिश सरकार ने सर जान साइमन के नेतृत्व में सात सदस्यीय वैदाहनिक आयोग ( साइमन कमीशन ) के गठन की घोषणा की , इसके सभी सदस्य  ब्रिटिश थे इसलिए सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया।  इसने 1930  में अपनी रिपोर्ट में द्वैध शासन प्रणाली , राज्यों में सरकारों के विस्तार , ब्रिटिश भारत संघ की स्थापना और सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखने आदि की सिफारशें प्रस्तुत की।  

ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत एवं  भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों  के साथ तीन गोलमेज सम्मलेन किये और एक श्वेत पत्र तैयार किया

तथा विचार हेतु ब्रिटिश संसद की संयुक्त  प्रवर समिति के समक्ष रखा जिसे कुछ संशोधनों के साथ भारत शासन अधिनियम 1935 में शामिल कर लिया गया।

ब्रिटिश प्रधान मंत्री  रैम्जे मैकडोनाल्ड  ने अगस्त 1932 में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व  पर कम्युनल अवार्ड योजना की घोषणा की और दलितों के लिए भी अलग निर्वाचन व्यवस्था के विस्तार का विचार दिया।  गाँधी जी ने यरवदा जेल में इसके विरुद्ध अनशन प्रारम्भ कर दिया।  फलतः कांग्रेस व दलित नेताओं के मध्य पूना समझौता हुआ  और दलितों हेतु निर्वाचन में स्थान आरक्षित कर दिया गया।  साइमन कमीशन के बाद कुछ ऐसी घटनाएं घटी जो 1935 के अधिनियम का आधार बनी।

इनमे मोतीलाल नेहरू के अध्यक्षता में गठित कमेटी 10 अगस्त 1928 , जिन्ना द्वारा 14 सूत्रीय कार्यक्रम पेश करना 29 मार्च  1929, 1930,1931, 1932 , द्वारा श्वेत पत्र का प्रस्तुतिकरण।

भारत शासन अधिनियम एक विस्तृत दस्तावेज (14 भाग 321 धाराएं एवं 10 अनुसूचियाँ  ) थी।  राज्य और रियासतों का एक इकाई रूप में अखिल भारतीय संघ की स्थापना की और तीन अनुसूचियाँ संघीय सूची (59 विषय ) , राज्य सूची ( 54 विषय ) और समवर्ती सूची (36 विषय )

 के आधार पर शक्तियों का बंटवारा कर दिया गया तथा अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दे दी गई।  संघ में सम्मिलित होना ऐच्छिक था इसलिए रियासतें इसमें शामिल नहीं हुई और संघीय व्यवस्था  अस्तित्व में नहीं आयी।

प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर प्रांतीय स्वायत्तता  कर दी गई और राज्यों में  उत्तरदायी सरकार की स्थापना की अर्थात गवर्नर को राज्य विधानपरिषदों के लिए उत्तरदायी  मंत्रियों की सलाह  पर कार्य करना आवश्यक था।  1937 में यह लागू हुआ और 1939 में समाप्त कर दिया गया।  केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का शुभारंभ किया गया और संघीय विषयों को स्थानांतरित एवं आरक्षित विषयों में विभक्त किया गया।

जो कभी लागू न हो सका।  11 राज्यों में से छह ( बंगाल , बिहार , संयुक्त प्रान्त , बम्बई , मद्रास और असम ) में द्विसदनीय व्यवस्था  ( विधानपरिषद व  विधानसभा ) प्रारम्भ की गयी।   दलित जातियों  , महिलाओं  और मजदूर वर्ग हेतु अलग से निर्वाचन  व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व  व्यवस्था  कर विस्तार किया गया।  अधिनियम 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को  समाप्त कर दिया गया।  दस प्रतिशत जनसँख्या को मताधिकार मिला।  देश की मुद्रा और शाख पर नियंत्रण हेतु  भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।  संघीय लोक सेवा आयोग  के साथ प्रांतीय सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यों हेतु संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना की गयी।  1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 | Government of India Act 1935

1  शासन की संघात्मक व्यवस्था

2. लोक सेवा आयोगों की व्यवस्था

3. राज्यपाल का पद और कार्य

4. आपातकालीन प्रावधान

5.न्यायपालिका की संरचना और कार्य

6.  देश की समस्त प्रशासनिक मशीनरी