Jalvayu Parivartan Avn Paryavaran In Hindi | प्रमुख पर्यावरण सम्मेलन
Table of Contents
जलवायु परिवर्तन :-
किसी स्थान विशेष के दीर्घकालीन मौसम संबंधी दशाओं के औसत को जलवायु कहते हैं यथा वायुमंडलीय दबाव, आर्द्रता, तापमान आदि।
जलवायु सामान्यतः स्थिर रहती है, परंतु वर्तमान में स्थानिक एवं वैश्विक जलवायु में मानवीय एवं प्राकृतिक कारणों से परिवर्तन देखने को मिल रहा है जिसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं।
जलवायु में दिखने वाले ये परिवर्तन लंबे समय का परिणाम है जिसके न केवल क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं बल्कि संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की चौथी आकलन रिपोर्ट (2007) ने धरती के भविष्य की खतरनाक तस्वीर का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट में 1906 से 2005 तक वैश्विक औसत तापमान में 0.74oC की वृद्धि का अनुमान है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) की सघनता में लगातार वृद्धि हुई है। संक्षेप में, जलवायु परिवर्तन से संबंधित कुछ तथ्यों और आंकड़े इस प्रकार हैं:
जलवायु परिवर्तन से संबंधित कुछ तथ्य :-
1901-2000 की अवधि के लिए सतह के हवा का तापमान, 100 साल के लिए 0.4 oC के महत्वपूर्ण चेतावनी की ओर संकेत करता है;
यह अनुमान है कि 21 वीं सदी के अंत तक, वर्षा 15 से 31% तक बढ़ेगी और औसत वार्षिक तापमान 3oC से 6oC तक बढ़ेगा;
मॉनसून की तीव्रता के साथ हिम के त्वरित पिघलने से हिमालय के क्षेत्र में बाढ़ की आपदाएं हो सकती हैं;
भारतीय तट पर प्रति दशक में 1 सेमी समुद्र के स्तर में वृद्धि की प्रवृत्ति दर्ज की गई है;
बाढ़, क्षरण और नमक पैठ से डेल्टा को खतरा होगा;
तटीय मैनग्रोव के ह्रास से मत्स्य पालन पर असर पड़ेगा; तथा
बढ़ते तापमान से कृषि उत्पादन पर असर पड़ेगा।
जलवायु परिवर्तन के कारण:
जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों कारणों से हो रहा है जिसमें मानवीय कारणों का अधिक योगदान है।
मानवीय कारणों में निम्नलिखित मानवीय गतिविधियों को देखा जा सकता है।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन यथा कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड आदि के उत्सर्जन में वृद्धि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है।
भूमि उपयोग में परिवर्तन भी इसके लिये जिम्मेदार है यथा इससे सतह के एल्बीडो में वृद्धि हुई है।
इसके अलावा वनोन्मूलन, पशुपालन, कृषि में वृद्धि, नाइट्रोजन उर्वरकों का कृषि में उपयोग आदि क्रियाएँ भी जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार हैं।
प्राकृतिक कारणों में सौर विकिरण में बदलाव, टेक्टोनिक संचलन, ज्वालामुखी विस्फोट आदि शामिल हैं।
वस्तुतः जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण भूमंडलीय ऊष्मन है जिसके लिये प्रमुख रूप से ग्रीन हाउस गैसें (GHGs) जिम्मेदार हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गये प्रयासः-
वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौता अस्तित्व में आया जिसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
तापमान को पूर्व औद्यागिक स्तर में 2°C तक सीमित रखना एवं इसे और आगे 1.5°C तक सीमित रखने का प्रयास करना।
विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराना।
यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क ऑन क्लाईमेट चेंज (UNFCCC) के COP-23 में पहली बार एक्शन प्लान को अंगीकार किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की गयी।
COP-25 में पेरिस समझौते के प्रावधनों को क्रियान्वित करने की प्रतिबद्धता जताई गई।
प्रमुख पर्यावरण सम्मेलन :-
स्टॉकहोम सम्मेलन :-
स्टॉकहोम सम्मेलन का आयोजन 5 जून 1972 को स्वीडन के स्टॉकहोम शहर में किया गया था।
स्टॉकहोम सम्मेलन की वर्षगांठ के तौर पर प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय 1972 में लिया गया।
स्टॉकहोम सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ जिसका वर्तमान मुख्यालय केन्या देश के नैरोबी शहर में स्थित है।
यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (POPs) से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
भारत ने 13 जनवरी, 2006 को स्टॉकहोम समझौते की पुष्टि की थी।
हेलसिंकी सम्मेलन :-
हेलसिंकी सम्मेलन का आयोजन फिनलैंड देश के हेलसिंकी शहर में 1974 में किया गया था।
इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना’ रखा गया था।
वियना सम्मेलन :-
वियना सम्मेलन यह ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए एक बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता है।
1985 के वियना सम्मेलन में सहमति बनी और 1988 में यह लागू किया गया।
इस सम्मेलन में मानव स्वास्थ्य और ओज़ोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों की रोकथाम करने के लिये प्रभावी उपाय अपनाने पर सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल :-
ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न पदार्थों के उत्पादन तथा उपभोग पर नियंत्रण के उद्देश्य के साथ विश्व के कई देशों ने 16 सितंबर, 1987 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे।
16 सितंबर को ओज़ोन दिवस मानने का निर्णय लिया गया।
जिसे आज विश्व का सबसे सफल प्रोटोकॉल माना जाता है।
रियो सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन) :-
यह शिखर सम्मेलन ब्राजील की राजधानी रिओ डि जेनेरियों में 3 जून 1992 से 14 जून 1992 तक चला जिसमें 182 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित इस शिखर सम्मेलन को ही ‘पृथ्वी सम्मेलन’ या ‘रियो सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है।
इस सम्मलेन का मुख्य विषय 21वीं सदी के लिए पर्यावरण के महत्वपूर्ण नियमों का एक दस्तावेज तैयार करना था जिसे एजेंडा-21 के नाम से जाना जाता है।
पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है।
एजेंडा – 21
एजेंडा – 21 पर्यावरण एवं विकास के संदर्भ में एक अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है जिसे सम्मेलन में उपस्थित 182 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
एजेंडा-21 सदस्य राष्ट्रों पर बाध्यकारी नहीं है फिर भी राष्ट्रों से यह अपेक्षा की गई कि अपनी भावी विकास की नीतियां एजेंडा-21 की नीतियों के अनुरूप निर्माण करेंगे।
एजेंडा-21 पारिस्थितिकी एवं आर्थिक विकास के संदर्भ में संतुलन स्थापित करते हुए निम्न विषयों पर बल प्रदान करता है –
गरीबी
उपभोग के ढंग
स्वास्थ्य
मानवीय व्यवस्थापन
वित्तीय संसाधन
प्रौद्योगिकीय उपकरण
एजेंडा-21 में निहित घोषणाओं के अनुपालन हेतु 1993 में एक आयोग का गठन किया गया जिसे सतत् विकास पर आयोग कहा गया। इस आयोग ने मई, 1993 से कार्य करना शुरू कर दिया।
क्योटो प्रोटोकॉल :-
क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए 11 दिसंबर, 1997 को अपनाया गया था।
इस सम्मेलन में सभी राष्ट्र एकमत होकर कार्बन डाई ऑक्साइड में कटौती के लिए सहमत हुए। औद्योगिक देशों को वर्ष 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 5.5 % कम करना तय हुआ।
इसकी पहली प्रतिबद्धता अवधि वर्ष 2008 से 2012 तक थी। अपनी दूसरी प्रतिबद्धता अवधि 2012 में अपनाया गया था लेकिन, केवल 65 देशों में अब तक दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (2013 – 2020) की पुष्टि की है।
जोहान्सबर्ग सम्मेलन (पृथ्वी 10) :-
इस सम्मेलन का आयोजन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग शहर में बर्ष 2002 में किया था।
इस सम्मेलन का मुख्य विषय सतत विकास (Sustainable Development) था।
जोहान्सबर्ग सम्मेलन के द्वारा वैश्विक गरीबी उन्मूलन के लिए “विश्व एकजुटता कोष” की स्थापना को मंजूरी प्रदान की गई।
कानकुन सम्मेलन
मेक्सिको में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पर कानकुन सम्मेलन 2010 में आयोजित किया गया।
इसे UNFCCC CoP – 16 के नाम से जाना जाता है। इसमें 194 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर एक नवीन संधि के लिए सर्वसम्मति कायम करना, उत्सर्जन की मात्रा तय करना तथा वातावरण वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के तापमान से 2 डिग्री कम तक बनाए रखने पर सहमत होना था।
अब कानकुन सम्मेलन के समझौते के अंतर्गत विकसित देशों ने वादा किया है कि वर्ष 2020 तक वे 100 अरब डॉलर हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) द्वारा उपलब्ध कराएंगे।