केंद्र-राज्य संबंध

Kendra Rajya Sambandh In Hindi | केंद्र-राज्य संबंध

भारत  के केंद्र राज्य सम्बन्ध  संघवाद की ओर उन्मुख है  और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से लिया गया है।

भारतीय संविधान  में केंद्र  तथा राज्य के मध्य विधायी , प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियों का  विभाजन किया गया है।   लेकिन न्यायपालिका को  विभाजन की परिधि से बाहर रखा गया है।  

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में  केंद्र एवं राज्य की शक्तियों के बंटवारे से  संबधित तीन सूची दी गई है  –

1.संघ सूची

2.राज्य सूची

3.समवर्ती सूची

केंद्र-राज्य संबंध अनुच्छेद :-

विधायी सम्बन्ध ( अनुच्छेद 245 -255  )

प्रशासनिक सम्बन्ध  (अनुच्छेद  256- 263)

वित्तीय सम्बन्ध  (अनुच्छेद 294- 300)

विविध सम्बन्ध  (अनुच्छेद 301- 307)

संघात्मक शासन की मुख्य विशेषता संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया जाना है । इस विभाजन का आधार यह होता है कि राष्ट्रीय महत्व के मामलों को केंद्र सरकार को दिया जाता है। और स्थानीय मामलों को राज्य सरकार को दिया जाता है । जिन मामलों का विभाजन केंद्र तथा राज्य के मध्य नहीं किया जाता है, उन्हें दोनों के अधिकार के अन्तर्गत रखा जाता है । जिन मामलों को न तो केंन्द्र को और न तो राज्य को प्रदान किया जाता है और न ही दोनों के अधिकार के अन्तर्गत रखा जाता है, उन मामलों को या तो राज्य को प्रदान किया जाता है या केन्द्र को। भारतीय संविधान में वर्णित सातवी अनुसूची में शामिल संघ सूची के विषयों पर केन्द्र सरकार को, राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकार को तथा समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र तथा राज्य दोनों को और इन तीनों सूची में  न वर्णित विषयों अर्थात अवशिष्ट विषयों पर केंद्र को अधिकार दिया गया है।

1.संघ सूची :-

संघ सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है, जो राष्ट्रीय महत्व के है तथा जिन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार केंद्रीय विधायिका अर्थात संसद को है | इस सूची में कुल 100 विषयों को शामिल किया गया है, जिनमें से प्रमुख है-रक्षा, विदेश मामले, युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि, अणु, शक्ति, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, आयात शुल्क, बीमा, बैंकिंग, नागरिकता, जनगणना, विदेशी ऋण, डाक एवं तार, प्रसारण, टेलीफोन, विदेशी व्यापार, रेल तथा वायु एवं जल परिवहन आदि।

2.राज्य सूची :-

राज्य सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है, जो स्थानीय महत्व के है तथा  जिन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार राज्य विधान मंडल को है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकती है । इस सूची में शामिल विषयों की संख्या 61 है, जिनमें प्रमुख है- लोक सेवा, कृषि, वन, कारागार, भू-राजस्व, लोक व्यवस्था, पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्थानीय शासन, जेल, न्याय प्रशासन, क्रय, विक्रय, सिंचाई आदि।

3. समवर्ती सूची :-

 समवर्ती सूची में 52 विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर कानून बनाने का अधिकार संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों को दिया गया है । यदि इस सूची में वर्णित विषयों पर संसद तथा राज्य विधान मंडल दोनों द्वारा कानून बनाया जाता है, और यदि दोनों कानूनों में विरोध है, तो संसद द्वारा निर्मित कानून लागू होगा । इस सूची में जिन विषयों को शामिल किया गया है, उनमें से प्रमुख है – राष्ट्रीय जल मार्ग , परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, समाचार पत्र, कारखाना, शिक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक योजना आदि।

अवशिष्ट विधायी शक्ति

जिन विषयों को संघ सूची और समवर्ती सूची में शामिल नहीं किया गया है, उन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार संसद को प्रदान किया गया है । इस शक्ति के प्रयोग में संसद ऐसे विषयों पर कर लगाने के लिए कानून बना सकती है, जो विषय उक्त तीन सूचियों में से किसी में भी शामिल नहीं किये गये है।

राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार- संविधान में राज्य सूची के विषयों  पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के विधानमण्डल  को दिया गया है, कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। यें विशेष परिस्थितियां निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्ति

1.संविधान के अनुच्छेद 249 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राज्यसभा अपने उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है । संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून एक वर्ष की अवधि के लिए प्रवर्तनीय होता है, लेकिन राज्य सभा एक वर्ष में पुनः प्रस्ताव पारित करके संसद द्वारा पारित कानून के प्रवर्तन की अवधि एक वर्ष या बार-बार कई वर्षो के लिए बढ़ा सकती है। राज्यसभा ने इस शक्ति का प्रयोग अभी तक केवल एक बार 1950 में किया था जब संसद द्वारा व्यापार तथा वाणिज्य से संबंधित कानून बनाया गया था।

2.राष्ट्रीय आपात या  राष्ट्रपति शासन  लागू होने पर  (अनुच्छेद 250)

3. राज्यों की सहमति होने पर (अनुच्छेद 252 )

संविधान के  42 वाँ संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा

शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को छोड़कर अन्य सभी न्यायालयों का गठन एवं संगठन  आदि विषय को राज्य सूची से समवर्ती सूची में  शामिल कर दिया गया है।

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